गणतंत्र

राजा-शासन गया दूर कही, गणतंत्र का यह देश है |
चलता यहाँ सामंतवाद नहीं, प्रजातंत्र का यह देश है |

दिया गया है प्रारब्ध देश का, प्रजा के कर में;
किन्तु है राजनीति चल रही यहाँ सबके सर में |
तोड़ते है और बाँटने है प्रजा को अपने धर्म से,
विमुख करने देश की प्रजा को निज कर्म से |

यद्यपि है शक्ति आज भी प्रजा के साथ,
यदि मिल जाए समस्त भारतीयों के हाथ;
जोड़ी जा सकती है शक्ति एक मुष्टि में,
बज सकता है डंका अपना भी सृष्टि में |

यदि मिल कर बनाये हम ऐसा गणतंत्र,
जो हो सर्वोच्च-शक्तिमान-श्रेष्ठ प्रजातंत्र |
अंततः यही है हमारा भारत, हमारी मातृभूमि;
कर्तव्य है हमारा इसे बनाना हमारी कर्मभूमि |

-Bhargav Patel (अनवरत)

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