गीतिका-मुक्तक

…………गीतिका………..

श्रृंगार उत्पति वही होती जब खिली फूल की डाली हो
कुछ हास्य विनोद तभी भाता हंसता बगिया का माली हो |
कलरव करते विहगों की जब ध्वनि प्रात:कान में आती है
बरसाती मधुरसकंण कोयल जब बागों में हरियाली हो
कृषकों के कंधो पर हल और होठों पर जब मुस्कान खिले
क्लांतमयी ग्लांनिण चित्त को होता सुख जब खुशिहाली हो |
कान्हा की बंशी की धून लगती मन को जब मतवाली हो
मलयांचल भी शोभित होता जब आरुणिमा की लाली हो ||
उपाध्याय…

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

कृष्ण दीवानी

तोसे प्रीत लगाई कान्हा रे! जोगन बन आई कान्हा रे। तोसे प्रीत लगाई कान्हा रे। १. लाख विनती कर हारी, राधा तेरी दीवानी, तेरे दरस…

अपहरण

” अपहरण “हाथों में तख्ती, गाड़ी पर लाउडस्पीकर, हट्टे -कट्टे, मोटे -पतले, नर- नारी, नौजवानों- बूढ़े लोगों  की भीड़, कुछ पैदल और कुछ दो पहिया वाहन…

Responses

+

New Report

Close