गीतिका-मुक्तक
…………गीतिका………..
श्रृंगार उत्पति वही होती जब खिली फूल की डाली हो
कुछ हास्य विनोद तभी भाता हंसता बगिया का माली हो |
कलरव करते विहगों की जब ध्वनि प्रात:कान में आती है
बरसाती मधुरसकंण कोयल जब बागों में हरियाली हो
कृषकों के कंधो पर हल और होठों पर जब मुस्कान खिले
क्लांतमयी ग्लांनिण चित्त को होता सुख जब खुशिहाली हो |
कान्हा की बंशी की धून लगती मन को जब मतवाली हो
मलयांचल भी शोभित होता जब आरुणिमा की लाली हो ||
उपाध्याय…
उत्तम जी
Wah