मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूँ
मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूँ
लिख – लिख कर मैं कागज नहीं
अन्तर की रिक्तता को भरता हूँ
रिक्त स्थान कुछ ऐसे हैं…
मन के अन्दर बैठे हैं
वें प्रश्न पूंछ्ते रहते हैं
मैं उत्तर देता रहता हूँ
दुनिया हिस्सों में बंटी हुई
कितने किश्तों में कटी हुई
एक दूसरे से कितनी सटी हुई
मन चाहे सबको एक करुँ
बेफिक्रो की भी थोड़ी फिक्र करुँ
दुनिया की ही केवल फिक्र नहीं
मैं अपनी फिक्रो में भी रहता हूँ
ज़िंदगी बुझता चराग हो गई
गुटखा और पान पराग हो गई
खा -खा कर लोग सूँघते हैं
नशे में लोग ऊँघते हैं
जिंदगी EMI में बँटी हुई
EMI भरता रहता हूँ
न राजा मिला न रंक मिला
सौगात में प्रजा तंत्र मिला
नारे बड़े निराले मिलें
नदी की जगह नाले मिलें
अन्धेरे मिलें ,न उजाले मिलें
अन्याय की ठोकर खा -खा कर
न्याय खोजता फिरता हूँ
लिख -लिख कर मैं, कागज नही
अन्तर की रिक्तता को भरता हूँ ! तेज़
Bahut khoob
thanks a lot .
nice!!
ji shukriya panna ji
behatreen kavita
aapka aabhar.