अंधों में काना राजा
हावी होने लगता
हैं कुछ थोड़ा पाकर ही
चाहे वो धन/पद/शोहरत हो,
कमतर को
पांव की जूती समझ
अभिलाषा करता हैं
राज्य करने की,
और
विपन्न व्यक्ति अपने
अधूरेपन को गाता हुआ
अन्तस की कांति को
पहचाने बिन
बिठा लेता हैं
सिर आंखों पर
साबित कर देता है
अक्षरश: सत्य
“अंधों में काना राजा”….
सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है।
भावपूर्ण रचना है।
यथार्थ परक रचना
Nice line