अचरज भरा आकाश
अचरज भरा आकाश है
कहीं धूप है कहीं छांव है
आसमान की चादर में
सितारों के बूटे हैं
बादलों के घोड़े हैं
जो दौड़ते हैं इधर-उधर
जुगनू भी अपनी प्रेयसी को
ढूंढते हैं रात भर
चाँदनी है छितरी हुई
सबकी छतों पर इस तरह
रजत पिघलाकर किसी ने
फैला दिया हो जैसे हर जगह…
बहुत खूब
चाँदनी है छितरी हुई
सबकी छतों पर इस तरह
रजत पिघलाकर किसी ने
फैला दिया हो जैसे हर जगह”
वाह वाह, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति प्रज्ञा जी।
प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा वर्णन, बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है।
वाह, अति सुंदर प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर
👌✍✍✍