Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Tags: संपादक की पसंद
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रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं । मात-पिता को छोड़ अब वह सुत प्यारा, अब तो सास श्वसुर के पास रहते हैं…
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बहुत खूब
चाँदनी है छितरी हुई
सबकी छतों पर इस तरह
रजत पिघलाकर किसी ने
फैला दिया हो जैसे हर जगह”
वाह वाह, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति प्रज्ञा जी।
प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा वर्णन, बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है।
वाह, अति सुंदर प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर
👌✍✍✍