अन्तिम यात्रा
विश्व गुरु की संस्कृति की आज
ये यात्रा अंतिम निकल रही,
चिता जल रही संस्कारो की
मर्यादाएं राख हो रही।।
धुंआ हैवानियत का उड़ रहा
दरिंदगी की लपटें निकल रही,
देवी रूप में जिसकी पूजा होती
चींखें उसकी आज गूंज रही।।
इंटरनेट, सिनेमा ईंधन डालें
आधुनिकता अर्थी उठा रही,
सबको जिंदगी देने वाली
आज मुंह छिपाकर रो रही।।
भारतवासियों तुम जत्न करो
पुनर्जन्म इस संस्कृति का होए,
भार इन पापो का वरना
धरा अब ना ये सह पाए।।
पश्चिम सभ्यता का करो त्याग
समस्या अब ये विकट हो रही,
देखो, विश्वगुरु की संस्कृति की आज
ये यात्रा अंतिम निकल रही।।
AK
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - October 2, 2020, 7:43 pm
अतिसुंदर रचना
Anuj Kaushik - October 5, 2020, 11:12 pm
धन्यवाद् सर
Satish Pandey - October 2, 2020, 10:18 pm
बहुत यथार्थ अभिव्यक्ति
Anuj Kaushik - October 5, 2020, 11:13 pm
धन्यवाद् सर