अन्नदाता
मैं किसान हूं
समझता हूं मैं अन्न की कीमत
क्योंकि वो मैं ही हूं
जो सींचता हूं फसल को
अपने खून और पसीने से
मरता हूं हर रोज
अपने खेत की फ़सल को जिंदा रखने के लिये
ताकि रहे न कोई भूखा
कोई इस दुनिया में
फिर भी तरसता हूं खुद ही
रोटी के इक निवाले को
ले जाता है कोई सेठ
मेरी पूरी फ़सल को
ब्याज के बहाने, कोढ़ियों के दाम
लड़ता हूं अकेला
आकर शहर की सड़्कों पर
फिर भी नहीं हो
तुम साथ मेरे
अपने अन्नदाता के!
बहुत सुन्दर रचना, वाह
अति सुंदर और सटीक रचना, लाजवाब अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर
सुंदर
वाह 🙏