अब फिर से उस तरफ से खत आ रहे हैं….
अब फिर से उस तरफ से
खत आ रहें हैं
वो अपने नुमाइन्दों से मेरी खैरियत
पुंछवा रहे हैं….
हमारी फिक्र है या हमारी आरजू
हम कैसे हैं ? बस वो यह
जानना चाह रहे हैं…
भूल बैठे थे हम उन्हें
कल परसों ही
आज फिर हम बीमार हुए
जा रहे हैं…
शायद उन्हें एहसास हो आया है
अपनी खताओं का
या वो बस हमें यूं ही
सता रहे हैं…
मुद्दतों बाद हमनें जीना सीखा है
उन बिन और
अब वो लौटना चाह रहें हैं….
अब फिर से उस तरफ से
खत आ रहे हैं
वो हमारी खबर लेने
घर आ रहे हैं….
अब फिर से उस तरफ से
खत आ रहे हैं
वो हमारी खबर लेने
घर आ रहे हैं….
_______ बहुत खूब, कवि प्रज्ञा जी की बहुत सुंदर और मधुर रचना
Tq
अब फिर से उस तरफ से
खत आ रहें हैं
वो अपने नुमाइन्दों से मेरी खैरियत
पुंछवा रहे हैं….
हमारी फिक्र है या हमारी आरजू
हम कैसे हैं ? बस वो यह
जानना चाह रहे हैं…
बहुत ही रूमानियत भरी रचना
Tq
बहुत खूब
Tq