Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं । मात-पिता को छोड़ अब वह सुत प्यारा, अब तो सास श्वसुर के पास रहते हैं…
योग दिवश पर विशेष
योग के अलौकिक गुणों के माध्यम से कोरोना को दें मात रोगी के शरीर को योग के माध्यम से धीरे धीरे रोग मुक्त कर दें…
रात तूं कहां रह जाती
अकसर ये ख्याल उठते जेहन में रात तूं किधर ठहर जाती पलक बिछाए दिवस तेरे लिए तूं इतनी देर से क्यूं आती।। थक गये सब…
बहुत खूब, अति उत्तम रचना
कहे कलम आशीष, एक अनमोल है मुद्रा,
उसे पास रख कदम बढ़ा तू त्याग दे निद्रा
________ कवि सतीश जी को छंद शैली में लिखी हुई एक अनमोल रचना, सच ही तो है आशीर्वाद से बढ़कर कोई मुद्रा नहीं है, बहुत सुंदर विचार प्रस्तुत करती हुई लाजवाब अभिव्यक्ति,उत्तम शिल्प, शानदार लेखन,लेखनी को अभिवादन
अतिसुंदर भाव
बहुत खूब
उत्तम
वाह वाह अति उत्तम पाण्डेय जी
निद्रा में था रात भर, उठूँ धरूँ अब ध्यान,
मात-पिता गुरु देव का, अभिवादन सम्मान,
अभिवादन सम्मान, बड़ों का करूँ पूज लूँ,
ले उनसे आशीष, राह में कदम बढ़ा लूँ।
माता पिता तथा गुरुजनों का आशीर्वाद पाने को उत्सुक कविता