अमृत कलश

स्वर्णिम किरणों के रेशमी तार
मन सबके मनके जैसे वो हार
कितना उसको है मुझसे लाड़
सुर संगीत लिए आता सबके द्वार

सुनते हैं ऊज्ज्वलता का श्रोत वहीं
श्रृष्टि की सुन्दरता का‌ वो ही रथी
बल बुद्धि ज्ञान का भंडार सही
तभी तो अहंकार का लेश नहीं

दिनकर दरस को न तरसे कभी
इतनी ही आकांक्षा ईश से है
अमृत कलश तूं अमर रहे यही
इतनी प्रार्थना जगदीश से है

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close