अरी सरिता
अरी सरिता,
न रुक
चलते ही बन
चलते ही बन।
राह में सौ तरह के
विघ्न हों,
उनको बहा ले जा,
पत्थरों को घिस
पीस दे सब नुकीलापन,
पकड़ ले मार्ग तू अपना
न ला मन में तनिक विचलन।
बना दे रेत पाहन की
किनारे श्वेत हो जायें
रोकना चाहते हों मार्ग जो
तुझमें ही खो जाएं।
स्वयं का मार्ग तूने ही
बनाना है,
समुन्दर तक पहुंचना है,
सतत प्रवाह रखना है।
वाह वाह क्या बात है
वाह कमाल है
रुक जाना नहीं चलते जाना राह की हर मुश्किल को आसान बनाते हुए खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर भाव है