अश्क चमकीले ओस बने
मेरे अश्क जो गिरे धरा पर,
वो चमकीले ओस बने।
मुस्कुरा दिए वो दूर से देखकर,
मैं मोम सी पिघलती रही..
वो पाहन सम ठोस बने।
मेरी सिसकियों में उनको,
ठॅंडी पवन का एहसास हुआ
मेरे गर्म आंसू..
मेरी देह पिघलाते रहे॥
_______✍गीता
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Devi Kamla - April 5, 2021, 11:23 pm
बहुत सुंदर रचना
Geeta kumari - April 6, 2021, 11:52 am
हार्दिक धन्यवाद कमला जी
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - April 6, 2021, 8:26 am
अतिसुंदर भाव
Geeta kumari - April 6, 2021, 11:53 am
सादर आभार भाई जी🙏
Pragya Shukla - April 7, 2021, 10:50 pm
लेखनी की प्रखरता को नमन
Geeta kumari - April 8, 2021, 4:40 pm
बहुत आभार प्रज्ञा जी