अहो! ठंडक अब तो कम हो जा
अब सूर्य उत्तरायण में चले गए हैं,
अहो! ठंडक अब तो कम हो जा,
ठिठुरते हुए बडी मुश्किल से खुद की,
जिन्दगी को अब तक रख पाया हूँ बचा।
गलतियां जितनी भी हैं पूर्वजन्म की,
लेकिन अब तो बहुत हो गई
इस मौसम में सजा,
अब धीरे-धीरे गर्मी ला,
मच्छरों पर ताली पिटा।
इस सड़क के किनारे
बहुत हो गया मेरा सिकुड़ना,
अब पैर फैला कर लेटने दे,
अब बन्द कर दे
ठंडी ओस छिड़कना।
सूर्य उत्तरायण में चले गए हैं,लेकिन सर्दी कम होने का नाम नहीं ले रही है, ऐसी हालत में कोई गरीब व्यक्ति सड़क पर बहुत परेशान है, उसी अनुभूति को बताती हुई कवि सतीश जी की, गरीब व्यक्ति की कठिन सर्दी पर यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई रचना। उच्च स्तरीय लेखन
अतिसुंदर अभिव्यक्ति