आँसुओं को लिखती हूँ मैं

तुम्हारे लिए ही तो गजल,
नज्में लिखती हूँ मैं
मैं तो कुरान में भी
पढ़ती हूँ तुम्हें |
तुम्हें खो देने का खयाल
इतना तड़पा देता है मुझे
रात को जब भी आँख खुलती है
बस तुझी को ढूंढती हूँ मैं |
ये कविता ये गीत
सौगात है बस तुम्हारी
तेरी बेवफाई से ही तो
तुलसीदास बनी फिरती हूँ मैं |
लोग कहा करते हैं
मैं बहुत अच्छा लिखती हूँ
उन्हें क्या पता तेरा ही
दिया दर्द लिखा करती हूँ मैं |
सब करते हैं तारीफ मेरे
गीत, गजलों की
पर तेरी तालियों के साज को
तरसती हूँ मैं |
जब नहीं बनती है कोई
कविता मुझसे तो
तेरी गली में कदम रखती हूँ मैं |
लोग बेवजह ही मुझे
कवयित्री कहते हैं
तुझसे ही दर्द पाकर
आँसुओं को लिखती हूँ मैं |
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