आइना पूंछता है
आइना पूंछता है
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यह सवाल हर रोज
मानती क्यूं नहीं सलाह मेरा ।
चेहरा वही है
क्यूं वक्त जाया करती है मेरा
निखार आएगा कैसे
वही पहली सी फितरत है तेरा
ज़िद का आवरण कुछ छाया है ऐसा
अच्छाइयों पर लगा बादल घनेरा ।
कुमकुम से रौनक आएगी कब तक
अंन्तर्मन में छाया हो शक का बसेरा ।
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 28, 2021, 7:53 am
बहुत खूब
Satish Pandey - January 28, 2021, 8:11 am
बहुत सुंदर रचना
Geeta kumari - January 28, 2021, 4:33 pm
व्यथित ह्रदय की सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत करती हुई कवि सुमन जी की बहुत संजीदा रचना