आज चार रोटी मिली हैं

करीब पांच बरस के राज
के आंखों में उस वक्त
खुशी का ठिकाना
नहीं दिख रहा था,
ऐसा लग रहा था जैसे
उस कूड़े के ढेर में
कोई खजाना हाथ
लग गया था।
थैली लेकर उछला
माँ मिल गया
मिल गया आज का गुजारा,
आज चार रोटी मिली हैं,
एक बहन एक मैं
दो आप खा लेना,
नमक है ही
पानी है ही,
चल माँ पहले खा लेते हैं।
माँ का बुलंद स्वर-
तुम इसे लेकर
झोपड़े में जाओ बेटा
बहन और तुम
दो दो खा लेना,
मैं फिर खा लूँगी।

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Responses

  1. खुशी की कोई परिभाषा नहीं है , कवि सतीश जी ने अपनी कविता के माध्यम से यही संदेश देने की कोशिश की है ।भोजन मिलने पर कोई बालक इतना प्रसन्न भी हों सकता है,जो कि एक मूलभूत आवश्यकता है। जीवन के दृष्टकोण को समझाती हुई बेहद शानदार प्रस्तुति ।

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