आठवां अजूबा

गुवाहाटी शहर कर्फ्यू से ग्रस्त था। जहां तहां शोर मची थी। रास्ते पे इन्सान तो क्या जानवर तक चलने में कतराते थे। सारा शहर भयाक्रांत की आगोश में समाया हुआ था। इतने में किसी औरत की आवाज़ मेरी कानो में टकराई- मेरे बच्चे को बचा लो। बुखार से तप रहा है। अरे कोई तो जाओ किसी डाक्टर को बुला लाओ। उस औरत की आवाज़ में करुणा थी। मेरा दिल पसीज़ गया। मै जैसे ही घर का दरवाजा खोलना चाहा वैसे ही मेरी पत्नी रोक कर कहने लगी “आपका दिमाग सही है? सारा शहर कर्फ्यू से ग्रस्त है। जहां तहां दंगे फसाद हो रहे है। उस पे रात के बारह बज रहे है।आप आठवां अजूबा बन कर उस औरत के बच्चे को बचाने चले है। अगर आप को कुछ हो गया तो हमारे दो बच्चों का क्या होगा। आपने यह सोचा है? पुनः मेरी कानों में उसी औरत की करुणा भरी फ़रियाद सुनाई पड़ी। मैं अपनी पत्नी को एक तरफ करते हुए बाहर निकल पड़ा। पास जा कर उस औरत को कहा – मैं डाक्टर को लाने जा रहा हूँ। आप बच्चे को ख्याल रखिए। मैं वहाँ से पागल के भांति दौड़ने लगा। कुछ दूर दौड़ने के बाद यह ख्याल आया कि क्या कोई डाक्टर इतनी रात को दंगा फसाद के माहौल में अपनी जान हथेली पर रख कर आएगा ? फिर यह ख्याल आया कि क्यों न समाज सेवक अरुण जी के पास जाउँ। वह तो बहुत बड़े आदमी है। फिर मैं अरुण जी के घर के तरफ दौड़ पड़ा। वहाँ पहुँचने के बाद मैं जो देखा बहुत शर्म में पड़ गया। वह पास के ही लोगों के संग प्रेम रसपान में मगन थे। मै मायूस हो कर वापस आ रहा था। अचानक पुलिस की गाडी आ कर मेरे सामने रुक गई। सिपाही मुझ पर ऐसे लपके जैसे मैं मोस्ट वानटेड हूँ। दारोग़ा साहेब कहे – क्यों बे। कहाँ जा रहा है? लाला के काले धन कहाँ छुपा रखा है “?उस दारोग़ा की बात मैं समझ नहीं पाया। मैं कहा -साहेब। एक औरत के मासूम बच्चा बहुत बीमार है। मैं डाक्टर को बुलाने निकला हूँ। यदि मैं समय पर डाक्टर को वहाँ नहीं ले गया तो वह बच्चा मर जाएगा। मेरी बात को दारोग़ा ने झूठ समझा। मुझे गाडी में बैठा कर ऐसे ले गया जैसे साजन चले ससुराल।

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