*आत्म-बल*
कभी कोई कांटे बिछा दे राहों में,
कांटे चुन-चुन के दूर कर दो।
इस तरह बढ़ाओ आत्म-बल,
कि अरि के स्वप्न चूर कर दो।
अन्धकार कर दे कोई राहों में गर,
तो जला मशाल तिमिर दूर कर दो।
प्रतिकूल परिस्थिति से ना घबराओ कभी,
स्थिति अपने अनुकूल कर दो।
मेहनत और लगन चलो संग लेकर,
कि मार्ग की बाधाएं दूर कर दो।
चलते रहो निरंतर बिन रुके,
कि एक दिन मंज़िल को फ़तह कर दो।।
_____✍️गीता
बहुत खूब
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏
वाह बहुत सुंदर 👌👌👌
बहुत-बहुत धन्यवाद ऋषि जी
कभी कोई कांटे बिछा दे राहों में,
कांटे चुन-चुन के दूर कर दो।
इस तरह बढ़ाओ आत्म-बल,
कि अरि के स्वप्न चूर कर दो।
— कवि गीता जी यह प्रखर रचना है। अपने आत्मबल को ऊंचा रखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी गई है। कविता के भाव भी चिंतन के नये रचनात्मक सतह पर कविता को गढ़ने के यत्न से संबंधित है। बहुत खूब
आपकी इतनी अच्छी समीक्षा हेतु धन्यवाद शब्द कम पड़ रहे हैं सर। प्रेरणस्रोत बनी समीक्षा हेतु आपका हार्दिक आभार सतीश जी