आशियाँ
रेत का महल, पल दो पल में ढह गया।
आशियाँ अरमानों का पानी में बह गया।
तिनके जोड़कर बनाया था जो घोंसला,
बस वही, तूफानों से लड़ कर रह गया।
वह दरिया है, जो बुझा गई तिश्नगी मेरी,
सागर किनारे भी प्यासा खड़ा रह गया।
आरज़ू नहीं, आसमां से भी ऊँचे कद की,
ज़मीं का ‘देव’, ज़मीं से जुड़ कर रह गया।
देवेश साखरे ‘देव’
अतिसुंदर भाव
आभार आपका
Nice
Thanks
Good
Thanks
Wah
शुक्रिया
Wah
धन्यवाद
बड़िया
धन्यवाद
वेलकम
वाह जी