आशियाँ
रेत का महल, पल दो पल में ढह गया।
आशियाँ अरमानों का पानी में बह गया।
तिनके जोड़कर बनाया था जो घोंसला,
बस वही, तूफानों से लड़ कर रह गया।
वह दरिया है, जो बुझा गई तिश्नगी मेरी,
सागर किनारे भी प्यासा खड़ा रह गया।
आरज़ू नहीं, आसमां से भी ऊँचे कद की,
ज़मीं का ‘देव’, ज़मीं से जुड़ कर रह गया।
देवेश साखरे ‘देव’
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - November 16, 2019, 10:08 pm
अतिसुंदर भाव
देवेश साखरे 'देव' - November 17, 2019, 12:26 am
आभार आपका
Ashmita Sinha - November 17, 2019, 12:11 am
Nice
देवेश साखरे 'देव' - November 17, 2019, 12:27 am
Thanks
NIMISHA SINGHAL - November 17, 2019, 12:49 am
Good
देवेश साखरे 'देव' - November 17, 2019, 11:27 am
Thanks
nitu kandera - November 17, 2019, 7:39 am
Wah
देवेश साखरे 'देव' - November 17, 2019, 11:27 am
शुक्रिया
Poonam singh - November 17, 2019, 5:39 pm
Wah
देवेश साखरे 'देव' - November 18, 2019, 11:47 am
धन्यवाद
Abhishek kumar - November 23, 2019, 10:31 pm
बड़िया
देवेश साखरे 'देव' - November 23, 2019, 11:42 pm
धन्यवाद
Abhishek kumar - November 24, 2019, 2:05 pm
वेलकम