आ अब लौट चलें
जल जाती हूं ज्वाला सी,
जब अरमान मेरे जलते हैं
लेकिन तुम्हारी नेह-वर्षा से,
वो धीरे-धीरे फलते हैं
मीठे-मीठे बोल बोल कर,
दुनिया वाले छलते हैं
लेकिन तुम्हारी नेह-वर्षा से,
वो जख्म भी ढ़लते हैं
कुछ अच्छा कर पाएं कभी तो,
दुनिया की नज़रों में खलते हैं
लेकिन तुम्हारी नेह-वर्षा से,
अरमान मेरे पलते हैं
जी ना करें इस जहां में
जीने का जहां लोग छलते हैं
आ अब लौट चलें कहीं पर,
यहां से अब चलते हैं
_____✍️गीता
बहुत खूब
धन्यवाद पीयूष जी
बहुत खूब, सुन्दर अभिव्यक्ति। लेखनी निरंतर चलती रहे।
आपकी प्रेरक समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏