इंसान और हैवान

मै इंसानियत को खोजने चला हूँ, हैवानों के बाजार में।
कहाँ छुपा है इंसानियत, जरा देखें तो उसे क्या हाल है।।

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

    1. आपकी समीक्षा मेरी रचना हेतु सदा ही रहा है। बहुत बहुत धन्यवाद।

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