इंसान नाम के रह जाते हैं
जिन्हें कुछ न है पता
किसी खाश चीज का
फिर भी वो बताते हैं
समझाना दिखाते हैं
दया का पात्र बनते हैं
या फिर गुस्सा दिलाते हैं
माखौल खुद का उड़ाते ही
औरों का दिल दुखाते हैं
कुर्सी पर पड़े रहकर
जनता का लाखों डकर जाते हैं
इक आह तक भरते नहीं
संयत्र लूटते जाते हैं
चोरी पकड़ी जाती है तब
सरकार पर चिल्लाते हैं
बाबू बन जाते हैं लेकिन
इंसान नाम के रह जाते हैं
वाह बहुत खूब
यथार्थ चित्रण