इंसान से परमात्मा
कोई वजूद नहीं था तुम्हारा
मेरे बिना..
यूंँ ही गुमसुम बैठे रहते थे..
मैंने ही आकर तुम्हारी
जिंदगी में रंग भरे
होठों को मुस्कुराना सिखाया,
हँसना सिखाया, रोना सिखाया।
मेरी ही मोहब्बत ने तुम्हें
इंसान से परमात्मा बनाया।
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Prayag Dharmani - August 16, 2020, 10:42 pm
बेहतर खयाल बेहद सरल सहज अभिव्यक्ति
Pragya Shukla - August 16, 2020, 10:51 pm
Thanks
Satish Pandey - August 16, 2020, 11:11 pm
अतिसुन्दर
Pragya Shukla - August 16, 2020, 11:26 pm
🙏🙏
मोहन सिंह मानुष - August 17, 2020, 12:33 am
बहुत ही बेहतरीन
Pragya Shukla - August 17, 2020, 3:13 pm
🙏
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - August 17, 2020, 7:33 am
Atisunder
Pragya Shukla - August 17, 2020, 3:13 pm
धन्यवाद
Anu Singla - August 17, 2020, 7:42 am
सुन्दर भाव
Pragya Shukla - August 17, 2020, 3:13 pm
Thanks
rj veera - August 17, 2020, 9:16 am
बहुत सुन्दर भाव है
अच्छा लिखती हो
Pragya Shukla - August 17, 2020, 4:21 pm
🙏🙏
Virendra sen - August 17, 2020, 9:43 am
सुन्दर अभिव्यक्ति
Pragya Shukla - August 17, 2020, 4:21 pm
🙏🙏
Rajiv Mahali - August 17, 2020, 11:23 am
बहुत खूब
Pragya Shukla - August 17, 2020, 4:21 pm
🙏🙏
vivek singhal - August 24, 2020, 7:49 pm
उत्तम
रचना प्रस्तुति..
रचना की विषय नवीन है
प्रतिमा चौधरी - September 26, 2020, 3:27 pm
अतिसुंदर