इल्म था तब उन्हें मुहब्बत का
गुप्तगू कर चुके हैं गुमसुम से
फिर अदा से बनाया गुलदस्ता
बड़े ही प्यार भरे जाहिल हैं,
आ गए मन में ऐसे आहिस्ता।
इल्म था तब उन्हें मुहब्बत का
जब कहीं नेह की इबादत थी,
वो बुरे थे भले थे जैसे थे,
हमें तो बस उन्हीं की आदत थी।
हो गई थी हमें खजालत तब
जब हमें घूरती निगाहें थी,
कह न पाए थे चाहते थे जो
वो सुलगती सी मन की आहें थी।
बहुत खूब