इलज़ाम
उसने बेबुनियाद इल्जामों की मुझपर फहरिस्त लगा दी,
जीवन कटघरे को मानों जैसे हथकड़ी लगा दी,
छटपटाते रहे मेरे जवाब किसी मछली से तड़पकर,
और सवालों की उसने मानों कीलें सी चुभा दी,
बेगुनाह था मगर फिर भी खामोशी साधे रहा,
मग़र उसने तो सारे लहजों की धज्जियाँ उड़ा दी॥
राही (अंजाना)
bahut khoob
Sundar
बेहतरीन रचना