इस क़ैद ए तन्हाई से कब रिहा होंगें हम।
इस क़ैद ए तन्हाई से कब रिहा होंगें हम।
सोचा तो था की मुकम्मल जहां होंगे हम।।
,
रोज़ आते है ख़्याल हमकों परेशान करने।
अब जितना कहेंगे उतने ही रवां होंगे हम।।
,
तुम फ़लक ए हुस्न हो हमसे क्या है वास्ता।
हुए जो जिंदगी से रूबरू क्या फ़ना होंगे हम।
,
खुशियों की फ़ेहरिस्त में नहीं कही नाम मेरा।
अब ग़मो से क्या कहें कोई सज़ा होंगे हम।।
,
हमकों मिली नहीं मंजिल इक अरसा हुआ।
साहिल मुमकिन ये है गुमनाम पता होंगे हम।।
@@@@RK@@@@
बहुत खूब
धन्यवाद सर
nice one
धन्यवाद
Good
वाह बहुत सुंदर रचना
बेहतरीन सृजन