ईश्वर की कठपुतली
कुछ खार जमाने में हर चमन में होते हैं,
चुभते हैं जिस्म को लहूलुहान कर देते हैं,
तो कुछ खार लफ्जों से घायल कर देते हैं,
उन खारों से कोई जाकर पूंछे, क्या उन्हीं का स्वाभिमान है सर्वो परि?
बाकी सबका क्या कोई वजूद नहीं,उनका कोई स्वाभिमान नहीं,
कुछ भी कह देने से कोई अपमान नहीं!
सब क्या माटी के ढेले हैं उन सम कोई महान नहीं,
अरे प्रज्ञा! जाकर उनसे कह दो हम सब ईश्वर की कठपुतली हैं,
इस दुनिया में सब आते हैं,सबको निश्चित दिन जाना है,
इस कालचक्र के फेरे से तो बचता कोई भगवान नहीं..फिर खार तो खार हैं, नश्वर हैं,
दामन छेदकर नष्ट हो जाएगे,बस उनके दिए जख्म़ ही यादगार रह जाएगे…
Nice Thoughts
बहुत ही सराहनीय प्रस्तुति
संसार में मनुष्य खाली हाथ आता है
और खाली हाथ ही चला जाता है बस लोग अच्छाई या बुराई से ही याद किए जाते हैं, अहंकार वैसे भी बहुत खतरनाक होता है अपने लिए भी दूसरों के लिए भी
अतिसुंदर भाव
सचमुच, आपकी रचना वास्तविकता के करीब है।
Atisunder
Nice
बहुत सुंदर लेखनी