उतार – चढा़व

दरिया के किनारों पर ख़्वाहिशे नहीं पनपती,
डूबी हुई कस्ती को कभी शाहिल नहीं मिलती |

उठना पड़ता है तल से सतह पर कुछ बयां करने को,
यूं पानी के नीचे मंजिलें आसमानों को नहीं छूती |

उतार – चढ़ाव आते हैं जीवन में, ये जीवन का हिस्सा हैं,
गर पाना हो पार इनसे तो बेफिक्र राह पर चलना है |

दुनियादारी के तानों से खुद को लज्जित न करना कभी,
घी टेढ़ी उंगली से निकलता है ये बात याद रखना सभी |

रेखा को बिना मिटाये, छोटी करना सीखा था जैसे कभी,
रुतबा अपना बढा़कर समाज में ईज्जत पाना सभी है |

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