उदास खिलौना : बाल कबिता
मेरी गुड़िया रानी आखिर
क्यों बैठी है गुमसुम होकर।
हो उदास ये पूछ रहे हैं
तेरे खिलौने कुछ कुछ रोकर।।
कुछ खाओ और मुझे खिलाओ
‘चंदा मामा….’ गा-गाकर।
तुम गाओ मैं नाचूँ संग- संग
डम -डम ड्रम बजाकर ।।
वश मुन्नी तू इतना कर दे।
चल मुझ में चाभी भर दे।।
देख उदासी तेरा ‘विनयचंद ‘
रहा उदास खिलौना होकर।
मेरी गुड़िया रानी आखिर
क्यों बैठी है गुमसुम होकर।।
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Geeta kumari - February 27, 2021, 10:57 am
छोटी सी गुड़िया रानी पर बहुत सुंदर कविता
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 27, 2021, 6:28 pm
बहुत बहुत शुक्रिया बहिन
Satish Pandey - February 27, 2021, 11:43 am
कवि शास्त्री जी की बेहतरीन रचना। कवि ने प्यारी गुड़िया से जुड़ी बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति की है। कविता में कोमलता है, स्नेह की व्यापकता है औऱ बहुत मधुरता है। वाह
चंदा मामा….’ गा-गाकर।
तुम गाओ मैं नाचूँ संग- संग
डम -डम ड्रम बजाकर ।।
वश मुन्नी तू इतना कर दे।
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 27, 2021, 6:29 pm
बहुत बहुत धन्यवाद पाण्डेयजी इतनी सुंदर समीक्षा हेतु
Rakesh Saxena - February 27, 2021, 6:19 pm
मासूम गुड़िया की नटखट हरकतों पर बहुत सुंदर रचना
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 28, 2021, 11:56 am
धन्यवाद प्रभु
Pragya Shukla - March 8, 2021, 1:41 pm
Nice