उपजे मीठी खीर
तीर न मारो बोल कर, उलाहना के बोल,
भीतर बैठा दर्द है, देखो आंखें खोल,
देखो आंखें खोल, सत्य स्वीकार करो तुम
चुभने वाली बात न करके प्यार करो तुम,
कहे लेखनी बोल में उपजे मीठी खीर,
छोड़ भी दो अब मत मारो वाणी के तीर।
—— डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
उलाहना से अलंकृत , कवि सतीश जी की बहुत खूबसूरत छंद बद्ध रचना, भाव और शिल्प का अद्भुत संगम।
बहुत बहुत धन्यवाद
सुवचन
सादर धन्यवाद
लाजवाब अभिव्यक्ति
बहुत धन्यवाद
बहुत ख़ूब…वाह क्या बात है
बहुत धन्यवाद