एक दीप तेरे नाम की

आज जब मानव के बजूद पर बन आई है
फिर भी जाति-धर्म की ये कैसी लङाई है
गरीब देखे न अमीर ये वैश्विक महामारी है
मानव बनकर रहने में हम सब की भलाई है
मानव बनें!दीप इस आश से जलाई है ।।
आज अपनों से भी अछूत बन गए है हम
एक मीटर का फासला क्या लगता है कम
अब भी ना संभले तो कब संभलेगे हम
सद्बुद्धि दे !दीप इस आश जलायी है ।।
जब काम था तो वक्त की कमी थी
काम के चलते अपनों में दूरियां बनी थीं
आज समय है , पर काम की कमी है
दूरियां मिटें!दीप इस आश से जलाई है ।।
देखो ना अब ये कैसी तबाही है
एक दूजे से मिलने की मनाही है
कुछ भी छूने से पहले,कांपे है मन
मन का डर भागे!दीप इस आश से जलाई है ।।
एक युद्ध छिड़ चुका है मानवता के दुश्मन से
अदृश्य हैं दिखता नहीं इन सहमी निगाहों से
जीतेगे हम, अपनी धैर्य, संयम,चतुराई से
इनका हौसला बढे!दीप इस आश से जलाई है ।।
हम हैं घरों में बैठे पूर्ण बंदी का पालन करके
चलें हैं कई महान त्यागी,धरके जान हथेली पे
खाने-पीने की भूख नहीं,जीवन की सूध नहीं
उनकी दीर्घ आयु हो !दीप इस आश से जलाई है ।।
सुमन आर्या
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