एक सुनहरी धूप थी तुम ओ सखी !!

एक सुनहरी धूप थी तुम ओ सखी !
पर गैर की टुकड़ी में तुम जा मिल गई ।
ना सोच पाई मैं ना संभल सकी
बस अकेली थी अकेली रह गई ।।

Related Articles

तुम

तुम कुछ यूँ ज़रूरी बन गए कि तुम्हे भुला ना सकी, इस बात को किसी और को बता ना सकी, इस दिल का भोज कभी…

गीत

“गीत” :::::::::::: हे!री सखी कैसे भेजूं , प्रिय को प्रणय निवेदन। दूर देश विदेश भय हैं वो मन का मेरे प्रिय साजन। हे! री सखी…

सखी

ऐसी क्या बात है सखी, क्या हो तुम मुझसे नाराज सखी करके चुनरी का ओला सखी, क्यूं कर दिया अबोला सखी ना कोई संदेश ना…

Responses

+

New Report

Close