ऐसी मिठास फैले

दो पंक्तियों से मेरी
ऐसी मिठास फैले,
मिट जायें नफ़रतें सब
दूर हों झमेले।
कविता तो प्रेम को है
बस प्रेम ही हो मकसद
लिखूं प्रेम लिख दूँ
निकलें न पद विषैले।
क्या पा सकूँगा ऐसे
औरों को ठेस देकर,
पा कर भी क्या करूँगा
यूँ छदम वेश लेकर।
गम दूर कर सकूं तो
लिखना उचित है मेरा,
दूजे के गम बढ़ाकर
बांटू न मैं अंधेरा।
उग जाए मेरी कविता
सूखी हुई जमीं पर
कर दे हरा-भरा सब
विद्वेष में कमी कर।
दो पंक्तियों से मेरी
ऐसी मिठास फैले,
मिट जायें नफ़रतें सब
दूर हों झमेले।

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क्या लिखूँ…!!

आज सोंचती हूँ क्या लिखूं दर्द लिखूं या मोहब्बत का उन्माद लिखूं चैन लिखूं या बेचैनी लिखूं तेरे इश्क में फना होने का अफसाना लिखूं…

Responses

  1. बहुत सुंदर काव्यधारा प्रवाहित हुई है। जितनी भी तारीफ की जाए वह कम है सर।

  2. अतिसुंदर हृदयक भाव
    उदारवाद की चासनी चढ़ी एकदम खाजा मिठाई सी
    सरल सीधी एवं मीठी कविता।
    पाण्डेयजी की वाणी। हृदय में समानी।

    1. वाह शास्त्री जी, आपकी ओर से यह मिठास भरी समीक्षा पाकर अत्यंत हर्षानुभूति हो रही है। सादर धन्यवाद

  3. बहुत ही सरस काव्य है सर ,कौन सी पंक्तियां हाई लाइट करूं ,दुविधा में आ गई हूं ।सारी की सारी कविता मीठी वाणी से सराबोर है । कविता के शीर्षक के अनुसार ही मिठास फैलाती हुई बहुत ही शानदार रचना ।
    लेखनी से अनुपम साहित्य प्रस्फुटित हुआ है ।

    1. इस उत्साहवर्धक और प्रेरणादायी समीक्षा हेतु धन्यवाद शब्द भी कम है। आपकी इसी बेहतरीन समीक्षा शक्ति के अनुरूप ही आप सर्वश्रेष्ठ आलोचक सम्मान से विभूषित हैं। सादर अभिवादन आदरणीया

  4. बहुत ही जबरदस्त कविता, आपकी कविता ने सचमुच मिठास फैला दी, वाह पाण्डेय जी।

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