ऐसे न गीत गाओ
ऐसे न गीत गाओ
दिल को दुखाओ मत
खुश रहो दूर रहो
औऱ पास आओ मत।
भूले हैं मुश्किल से
वो दिन पुराने,
भूले ही रहने दो
और याद आओ मत।
निगाहों के भीतर
बसे ही रहो ना
अश्क के बहाने
बाहर को आओ मत।
रहो कुछ दिनों खुश्क
मौसम को देखो
ठंडक में ऐसे
बारिश बुलाओ मत।
आने दो पावस
नेह भी उगेगा
पतझड़ में दिल को
ऐसे लुभाओ मत।
— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय
उच्चस्तरीय अभिव्यक्ति पाण्डेय जी
बहुत धन्यवाद
सुंदर अभिव्यक्ति
सादर आभार
Nice,very nice
Thanks
अतिसुंदर भाव
सादर आभार
बहुत सुंदर लेखन
बहुत बहुत धन्यवाद