ऐ दिल!

ऐ दिल! तू गम की बात न कर
आराम फरमा काम की बात न कर।
कितना सजने लगा है अब वो
किसी और के लिए,
हम बिखर गए अब संभलने की बात न कर।

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Responses

  1. वाह जी वाह।        
    हर रोज कुछ और निखरते जाते हो,वक़्त की आड़ में कितना संवरते जाते हो,
    काजल,लाली, बिंदिया, मेहंदी सब बेजरूरत से रह गये,
    सब पूँछते है तुम ये कैसे करते जाते हो।

  2. कम शब्दों में आपकी कविता प्रेम ग्रंथ की पट खोलने की अटूट प्रयास कर रही है।

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