ऐ वक़्त
ऐ वक़्त ढूँढ लायेंगे तुम्हें ।
खो दिया उन क्षणों को
कयी स्वप्न सुनहले पलते थे
खौफजदा उन पलक को
जिनमें ख़ौफ के मंज़र तैरते थे
विलखती आत्मा में
आश की ज्योत जलाने को
ऐ वक़्त ढूँढ लायेंगे तुम्हें ।
याद कर उस पल को
पटरियों पर जब थककर चूर थे
थकान से मदहोश होकर
निन्द में मशगूल थे
निन्द से यम के दर का सफ़र
क्या राज़ है जानने को
ऐ वक़्त ढूँढ लायेगे तुम्हें ।
कयी दिनों तक भूख से बिलबिलाते
होंठ सूखे, पेट सटकर, दर्द से बिलखते
रोटियो की आश में दर-दर भटकते
पैदल ही लौटने को टोलियों में निकलते
ग्राम में भी ये प्रवासी क्यूँ स्नेह को तरसते
किस कुकृत्य की सज़ा, यह पूछने को
ऐ वक़्त ढूँढ लायेंगे तुम्हें ।
बहुत सुंदर, अभिव्यक्ति
सादर आभार सर
सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर आभार गीता जी
वाह सुमन जी!
उत्तम कल्पना है आपकी शब्दों का चुनाव
तो काबिले तारीफ है
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी
बहुत खूब