Categories: मुक्तक
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जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)
वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…
हम क्या-क्या भूल गये
निकले हैं हम जो प्रगति पथ पर जड़ों को अपनी भूल गये मलमल के बिस्तरों में धँस के धरा की शीतलता भूल गये छूकर चलते…
यह कैसा नया साल है
यह कैसा नया साल है, यह कौनसा नया साल है ना मौसम खुशगवार है, ना छाई वासंती बहार है ना फसलें नयी आई है, संग…
सोच, नए साल की.!.!
क्या इस साल भी लड़ना है तुमको धर्म और जाति के नाम पर क्या इस साल भी लुटने देनी है लड़की की इज़्जत नीलाम…
“लगता है भूल गये हो”
यूँ गयें हो दूर हम से जैसे कुछ था ही नहीं, लगता है पुरानी सोहबतों को भी तुम भूल गये हो, इतना भी आसान…
Waah
वाह बहुत सुंदर