कड़वी दास्ताँ..
कुछ लोग रोटियाँ सेकने आ गए जब जलने लगा मेरा मकाॅं।
किसी के नुकसान की ,
यही है कड़वी दास्ताॅं।
बुझाने आग ,
एक हाथ भी नहीं आया ।
देने को मेरा साथ,
कोई साथ भी नहीं आया।
तमाशा बना दिया है जख़्म को मेरे
देखने सब आते हैं,
कोई मरहम नहीं लाया॥
_____✍गीता
Bahut khoob
Thank you Rohit ji
बहुत सच्चाई भरी मार्मिक कविता
बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी