कब मना है..

राहों में गर कांटे बिछे हों,
तो बुहारना कब मना है ।
है अगर अंधियारी राहें ,
एक दीपक जलाना कब मना है ।
साथी कोई प्यारा, साथ छोड़ जाए,
बीच – राह में, कोई हाथ छोड़ जाए,
तो गम की वादियों से निकल कर,
समेट कर के ज़िन्दगी को ,
आगे बढ़ जाना कब मना है ।
………✍️गीता…….
बुहारना का अर्थ—
सफ़ाई करना,झाड़ू लगाना

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Responses

  1. वाह, बहुत सुंदर कविता है गीता। परेशानियां हों तो उनका हल निकालना जरूरी है।very nice,keep it up.

  2. राहों में गर कांटे बिछे हों,
    तो बुहारना कब मना है ।
    है अगर अंधियारी राहें ,
    एक दीपक जलाना कब मना है ।
    बहुत ही सुंदर, लाजवाब पंक्तियां

    1. समीक्षा। के लिए और कविता के भाव को समझने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद मोहन जी🙏

  3. वाह
    भाव मे अतीव गहराई है।
    “समेट कर के ज़िन्दगी को ,
    आगे बढ़ जाना कब मना है ।”
    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ, लाजवाब रचना। आपकी लेखनी विलक्षण है। रचनाधर्मिता को सैल्यूट। गीता जी

    1. कविता के भाव को समझने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी🙏…आपकी उत्साह वर्धक समीक्षा के लिए आपका हार्दिक आभार ।

  4. बहुत सुंदर भाव
    कुछ लोग हमेशा सिस्टम में हीं दोषारोपण करते रहते हैं, स्वयं उस कमी को दूर करने का प्रयास नहीं करते। उनके लिए इस रचना में सुंदर सीख है। और उनके लिए सबल प्रोत्साहन है जो कवियों को देख निराश हो जाते हैं।
    अतिसुंदर रचना।।

    1. इतनी सटीक समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी🙏
      कविता के भाव को समझने के लिए सादर आभार ।कमियों पर बेशक रोना आता है, लेकिन एक समय के बाद हमें हिम्मत कर के उठना होगा और ज़िन्दगी में अपना लक्ष्य पाना होगा बस यही भाव बताने की कोशिश की है। बहुत बहुत धन्यवाद ।

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