कभी शौक था मुझे….
कभी शौक था मुझे,
रंगों से खेलने का,
सपनों को बुननें का,
तारों को गिनने का,
चंदा से छिपने का ,
फूलों को छूने का,
कभी थी झूले की चाह,
तो कभी गुड़ियों की
कभी दौड़ती थी ,
कभी हंसती थी,
कभी मांगती थी, कुछ पैसे।
त्योहारों में।
दिवाली के दियों की,
चाह करती थी।
होली के रंगों की और
पिचकारी की।
बहुत उमंगे होती थी।
पर अब न चाह है,
इन सब चीजों की।
बस थोड़ी मुस्कान,
और थोड़ी खुशियां दे दे ।
अब यह जिंदगी…
अतिसुंदर
सादर धन्यवाद सर
सुन्दर अभिव्यक्ति
हार्दिक धन्यवाद
मासूम से सवाल जिनका जवाब शायद ही किसी के पास हो
सुंदर समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद
सुंदर समीक्षा
🙏
Wow
Thank you
शानदार
Thank you