करुण कथा मेहनतकश की
कुछ तो बेबसी रही होगी,
जो राहों पर निकल पड़ा मज़दूर।
ना साधन है ना रोटी है,,
निज घर जाने को मजबूर।
कुछ सपने लेकर आया था शहर,
वो सपने हो गए चकनाचूर ।
कड़ी धूप है, ना कोई छाया,
कब से इसने कुछ नहीं खाया।
भूखा कब तक मरे यहां,
घर भी तो है कोसों दूर।
फ़िर भी बच्चों को ले निकल पड़ा,
बेबस है कितना मज़दूर ।
किसी ने अपना बालक खोया,
किसी का उजड़ा है सिन्दूर।
करुण – कथा सुन,मेहनतकश की व्यथा सुन,
पलकें भीगेंगी ज़रूर 😥
ना साधन है ना रोटी है,,
निज घर जाने को मजबूर।
वाह वाह, यह लेखन प्रतिभा यूँ ही सदैव निखरती रहे। एक उच्चस्तरीय कविता।
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏 आपकी प्रेरणादायक समीक्षा से मेरी
लेखनी को नई दिशा और ऊर्जा मिलती है। बहुत बहुत आभार 🙏
Very nice
Thank you ji🙏
बहुत ही उम्दा।।
बहुत बहुत धन्यवाद जी 🙏
मार्मिक और यथार्थ चित्रण अतिसुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी। आपकी समीक्षा के लिए आभार🙏
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद सुमन जी
Bahut khoob
बहुत बहुत धन्यवाद आपका इंद्रा जी🙏🙏
बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत सारा धन्यवाद जी 🙏
यथार्थ परक
बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏
बहुत बढ़िया
बहुत बहुत धन्यवाद जी 🙏
उम्दा रचना
बहुत बहुत धन्यवाद जी 🙏
वाह बहुत ही उम्दा
Thank you very much Piyush ji 🙏