करो परिश्रम कठिनाई से
जहां की भीड़ में मतलबी लोगों के संग में ।
बहुत कुछ सीखने को मिलता है, वो है जिन्दगी ।
पर जिन्दगी के भी कुछ रंग है ।
बेरंग है जिन्दगी हमारी ।
ये कहती आज दुनिया किसी की ।।1।।
आज जो चढ़ के बोले रहे है लोग ।
कल वो भी रोते थे अपनी मुकद्दर पे ।
प्रारब्ध के भी खेल निराले है ।
जो कभी नंगे पाँव जमीं को चुमते थे ।
आज को धरा को मिट्टी समझता है ।।2 ।।
इन्सां का क्या है ?
कुछ मिल गया तो हँसता है,
कुछ खो गया तो बहुत रोता है ।
कुछ लोग जहां में ऐसे भी होते है ।
जिन्हें परवाह नहीं खोने पाने का ।
सिर्फ वहीं लोग तन्हा में रहना पसंद करते है ।।3।।
हमें भौतिक पुरूष से कुछ लेना नहीं ।
क्योंकि जिन्हें परवाह नहीं मातृभूमि की ।
वो क्या खाक़ देंगे राष्ट्र को ।
जो अपनी मर्यादा को सड़क पे निलाम करते है ।
उससे क्या आशा है हमारी ।
ये जानती दुनिया हमारी ।।4।।
कवि विकास कुमार
Nice
अच्छी पंक्तियाँ
ये न कोई कविता है न तुकबन्दी
जी आपने सही कहा, कोशिश करूँगा कि कुछ लिख सकूँ ।।