*कर्म पथ*

टूटे सपनों की सिसकियाँ,
नहीं सुनता है ये ज़माना।
इसलिए कर्म पथ पर,
मुझको है कदम बढ़ाना।
यदि मैं कभी भटक जाऊँ,
चलने से, सच्ची राह पर
तब तुम मेरा हाथ पकड़ कर,
ले आना साथी सत् मार्ग पर।
राहों में यदि आएं,
कॅंटक या अवरोध कोई
तब पीछे नहीं हटूॅं मैं,
उसका विरोध करने को कभी।
है प्रार्थना यही प्रभु से,
ऐसी शक्ति देना सदा
कर्म पथ पर चलती रहूॅं,
सत्कर्म करती रहूॅं सदा
______✍गीता

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Responses

  1. कॅंटक या अवरोध कोई
    तब पीछे नहीं हटूॅं मैं,
    उसका विरोध करने को कभी।
    — यूँ तो पूरी कविता बहुत सुंदर है। लेकिन कविता के भीतर ये पंक्तियां बहुत ही लाजवाब हैं। लेखनी की यह निरंतरता बनी रहे।

    1. उत्साह प्रदान करने वाली समीक्षा हेतु, आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी… आपकी समीक्षा से बहुत मनोबल मिलता है सर

    1. आपके द्वारा किए गए उत्साहवर्धन से लिखने की बहुत उर्जा मिलती है कमला जी, हार्दिक धन्यवाद

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