कलयुग की सन्तान…
एक दौर हुआ करता था
जब नित वंदन करता था नन्दन..
पिता के चरण दबाकर ही
शयनकक्ष में जाता था
नित उठकर मात-पिता को
अभिनन्दन करता था नन्दन…
अब समय हुआ परिवर्तित
आई कलयुग की संतानें
पिता बेटे को दुनिया माने
बेटा बाप को बाप ना माने..
बेटा ना करता है पिता का आदर
ना दिल से सम्मान
उस बाप की पीर कोई ना जाने
बुढ़ापे की लाठी’ ही जब
लाठी मारे
क्या होगा उस पापी संग
वह इस बात से है अन्जान
समय हुआ परिवर्तित
आई कलयुग की सन्तान..!!
अतिसुंदर भाव अतिसुंदर रचना शतप्रतिशत यथार्थ
धन्यवाद आपका
सुंदर भाव
बदलते दौर का चित्रण किया है। पुराने दौर और नए दौर का तुलनात्मक अध्ययन वाली सुंदर रचना ।
बहुत सुंदर भाव