कविता : इन्सान नहीं मिल पाया है
हर मन्दिर को पूजा हमने
भगवान नहीँ मिल पाया है
इस भूल भुलैया सी दुनिया में
इन्सान नहीं मिल पाया है ||
हर व्यक्ति स्वार्थ में डूब रहा
मन डूब गया भौतिकता में
संवेदनाओं का क़त्ल हुआ
झूंठ दगाबाजी करने में
कौन यहाँ पर ज़िन्दा है
मुझे समझ न आया है
इन तथा कथित इन्सानों में
इन्सान नहीं मिल पाया है
हर मन्दिर को पूजा हमने
भगवान नहीँ मिल पाया है
इस भूल भुलैया सी दुनिया में
इन्सान नहीं मिल पाया है ||
रहकर साथ अलग दिखते हैं
दौलत पर इतराते हैं
अपनों को छोड़कर लोग
गैरों को अपनाते हैं
भड़काने को आग विकल है
सबके मन में छुपी जलन है
कलियुग का सब दोष कहूँ क्या
इनकी वाणी में फिसलन है
देवत्व दिला सकने वाला
वह स्वार्थहीन उपकार नहीं मिल पाया है
इन तथा कथित इन्सानों में
इन्सान नहीं मिल पाया है
हर मन्दिर को पूजा हमने
भगवान नहीँ मिल पाया है
इस भूल भुलैया सी दुनिया में
इन्सान नहीं मिल पाया है ||
आजकल के माहौल के अनुसार बहुत ही सटीक चित्रण किया गया है कविता में । इंसान है पर इंसानियत नहीं रही, बहुत सुंदर रचना
Thanks ma’am, happy new year
बहुत सुंदर 👌👌👌👌
Thanks sir, happy new year
नव वर्ष की बधाई हो 🌹
बहुत खूब
Thanks sir, happy new year
“इन तथाकथित इन्सानों में
इन्सान नहीं मिल पाया है
हर मन्दिर को पूजा हमने
भगवान नहीँ मिल पाया है।’
————– आपकी यह कविता बहुत उच्चस्तरीय है प्रभात सर। सच्चाई को मौन रहकर नहीं बल्कि मुखर होकर ही सामने लाया जा सकता है। कविता की विशेषता यह है कि कवि की दृष्टि इंसान के व्यवहारिक पक्ष की उन छोटी से छोटी बातों पर गई है, जिसे लोग सामान्यतया नजरअंदाज कर जाते हैं। आज इंसान इंसान के बीच से संवेदनाएँ गायब होती जा रही हैं। जिसका आपने सुन्दर चित्रण किया है।