कवि
कवि
बनना आसान नहीं,
हृदय के उद्वेगो को
माला में पिरोना कोई खेल नहीं।
झुरमुटों के जंगल से
जज्बातों को एक-एक करके बाहर लाना
कोई खेल नहीं।
जिंदगी खुली किताब ना बन जाए
संभल कर लिखना कोई खेल नहीं ।
लिखे गए हर शब्द की गहराइयों में जाकर,
हर शब्द का मतलब खोजते है,
लोग हर शब्द को तराजू में तोलते हैं।
आखिर इतना दर्द क्यू छलक रहा है लेखन में??
लगता है कोई रोग पल रहा है जेहन में!!
शब्द दर शब्द प्रेम घुला है!!
लगता है कोई सिलसिला चल पड़ा है।
भगवान को ध्यायो तो भी नहीं चूकते है!
गृहस्थजीवन में क्या मन नहीं रमता??
रमता जोगी है!!!!
ये तक सोचते है।
बेचारे कवि आखिर कहा मुंह छुपाए
क्या क्या लिखे?
क्या क्या भाव छिपाए?
अंगारों पर चलते है
हर घड़ी तुलते है
हृदय में घुलते है,
तब कहीं खुलते है।
कवि अपनी बेचारगी किस तरह जताए!!!
निमिषा सिंघल
Right di
Thanks 🍎🍎
Nice
🌺🌺
Nice one
💐🙏
Sahi kaha
😍😍🤩🤩
bahut sunder bhaaw
बहुत आभार
Good
Thank you
कविता तो वो 🌹 है जिसे निहारने पर शीतलता मिलती है मगर नोंचने पर काँटे चुभते हैं।
बढ़िया विचार
हार्दिक आभार
Wah
बहुत आभार
वाह
धन्यवाद
सुन्दर