कहते है
खुद को शराब, और अपनी जवानी को नशा कहते है
खुद है वो एक मुर्दा और हमको वो फनाह कहते है
हुसन-ऐ-शबाब परोसना एक काम-ऐ-सबाब है उनके लिए
इबादत-ऐ-मोहोब्बत को वो एक संगीन गुनाह कहते है
रूह मर चुकी है उनकी, और जिस्म भी ताड ताड पड़ा है
न जाने किस बात को लेकर वो खुद को जवां कहते है
दिखती है उनकी महफ़िल मैं सबकी निगाहें भूखी हमको
अपने इस माहौल-ऐ-महफ़िल को वो हसीं समां कहते है
टूट कर बिखर गई है शख्शियत उनकी मगर
सबको दिखने के लिए वो अपने जिस्म को गुमा कहते है
खुद को शराब, और अपनी जवानी को नशा कहते है
खुद है वो एक मुर्दा और हमको वो फनाह कहते है……………………….!!
सुन्दर रचना
👏👏