क़लम बिना बैचैन
कलम चलाए बगैर चैन कहां!
आंखों के समंदर को
स्याही में घोलकर
उड़ेले बिना चैन कहां!
दफन जज्बातों को उधेड़े बिना
चैन कहां!
आतिश ए इश्क को
सुलगाए बिना चैन कहां!
तुम मेरे हो
दिल को समझाएं बगैर चैन कहां!
तुम्हे कागज पे उतारे बिना चैन कहां!
कलम कुछ यू चले
की तेरी सरगोशिया लिख दू।
अज़ाब नौच दू कजा से
फ़लसफ़ा लिख दू।
वरना कशिश !
पुरजोर मोहब्बत को तोहमत देगी ,
काग़ज़ पे दीदारे यार तो कर!!
फिर ना कहना
दीदारें यार बिना चैन कहां।
निमिषा सिंघल
Good
धन्यवाद
Very nice
Thank you
वाह
Wah