किताबे

किताबें
——–
किताबे गुमसुम रहती हैं
आवाज़ नहीं करती।
सुनाती सब कुछ है लेकिन
बड़ी खामोश होती है।
छुपा लेती है सब कुछ बस,
घुटन वो खुद ही सहती हैं।

दफन कर लेती बेचैनी,
दुख वो खुद ही सहती हैं।

लोग जो कह नहीं पाते,
किताबों में वो लिख जाते।

खुद तो निश्चिंत हो जाते,
किताबों को वो भर जाते।

अगर कोई झांकना चाहे
किताबें आईना बनती।

अगर कोई देखना चाहे
अक्स हर शख्स का बनती।

हृदय का बोझ ढोती है ,
बड़ी बेचारी होती है।

किसी दुखियारे प्रेमी सी,
किताबें बहुत रोती हैं।

निमिषा सिंघल

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close