“किसान आन्दोलन”

जो बादल सदैव ही निर्मल
वर्षा करते थे
निज तपकर अग्नि में
तुमको ठण्डक देते थे
वह आज गरजकर
तुम्हें जगाने आये हैं
ओ राजनीति के काले चेहरों !
ध्यान धरो,
हम ‘हल की ताकत’
तुम्हें दिखाने आये हैं…
———————————
धरती का सीना चीरकर
जो उत्पन्न किया
वह सफेदपोशों ने
अपनी तिजोरियों में बंद किया
हम वह ‘मेहनत का दाना’
उनसे छीनने आये हैं…
———————————

यह कैसा बिल लेकर आए
तुम संसद में ?
फूटा गुस्सा आ बैठ गये
हम धरने में
हम बीवी, बच्चे, खेत-खलिहान
छोंड़कर आये हैं…..
————————————
कितनी रातें सड़कों पर
टेंण्ट में बीत गईं
दो सौ से ज्यादा
किसान भाईयों की
मृत्यु हुई
हम ‘भारत माँ के लाल’
बचाने आये हैं……
——————————–
हम खालिस्तानी और विपक्षी
कहे गये
कोहरा, बादल, बिजली, वर्षा
से भी नहीं डरे
आँसू गैसे के गोले,
पीठ पे डण्डे खाए हैं…..
———————————–
कुछ अराजक तत्वों ने
इस आन्दोलन को अपवित्र किया
दूध बहाया तो कभी
लाल किले पर कुकृत्य किया
हम हलधर ! वह बदनामी का दाग
मिटाने आये हैं…….
————————————-
तुम ढीठ बड़े !
कुछ सुनने को तैयार नहीं
हम भी पीछे हट जाने को
तैयार नहीं
हम तुमको अपनी व्यथा
सुनाने आये हैं…
——————————————-
आज देखकर
अपनी थाली में सूखी रोटी
हिल पड़ा कलेजा
पगड़ी की भी हिम्मत टूटी
कोई क्या जाने ! हमने कर जोड़ के
कितने नीर बहाये हैं…

कुछ ढुलक पड़े गालों पर
कुछ थाली में टूट गिरे
कुछ गटक लिए जो
गले उतरकर आये हैं…
हम सूखी रोटी का मान
बढ़ाने आये हैं
अन्नदाता की पीर’ को
परिभाषित करने आये हैं…
**********************

काव्यगत् सौंदर्य एवं प्रतियोगिता के मापदण्ड:-

इस कविता को मैंने फोटो प्रतियोगिता में दिखाये गये चित्र को ध्यान में रखकर लिखा है|
जिसमें एक बुजुर्ग पगड़ीधारी किसान
अपनी थाली में सूखी रोटी देखकर सिर झुकाए हुए कुछ सोंचने की मुद्रा में खड़ा है |
उसकी खामोंशी को मैंने शब्दों के माध्यम से
रेखांकित तथा जीवंत बनाने की छोटी-सी कोशिश की है |
***********************************
प्रतियोगिता के मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए मैंने सर्वप्रथम चित्र तथा किसान आन्दोलन की समग्रता तथा समाहार शक्ती का प्रयोग किया है जैसा कि चित्र का भाव है वैसा ही भाव व्यक्त करने का प्रयास किया है…
काव्य के सभी तत्वों को समाहित करने के कारण तथा रचना का भावुक विषय काव्य परंपरा में कितना योगदान दे पाया यह तो निर्णायक मण्डल पर निर्भर है…

समाज में अच्छा संदेश पहुंचाने तथा किसान आन्दोलन को सार्थक दृष्टिकोण प्रदान करते हुए मैंने विषय को गम्भीरता से लिया है तथा
सरकार और किसान के बीच सार्थक वार्ता हो और मतभेद खत्म हो ऐसी कामना की है…
कविता के अन्त में मैंने चित्र को उसी रूप में प्रस्तुत किया है जैसा वह मेरे कविमन को नजर आया…
आपको मेरा प्रयास कैसा लगा जरूर बताइयेगा..
कविता को अन्त तक पढ़ने के लिए धन्यवाद…

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Responses

  1. अति सुंदर रचना
    फोटो पर सटीक बैठती हुई रचना
    आपने शब्दों के माध्यम से मस्तिष्क में किसानों की व्यथा को खींच दिया है
    शब्दों के माध्यम से फोटो का रेखांकन अति सुंदर है
    जिसकी तुलना नहीं करी जा सकती है
    किसान आंदोलन पर बहुत ही मार्मिक प्रस्तुतीकरण

  2. अतुलनीय काव्य रचना।
    चित्र का सजीव चित्रण।
    किसान बिल और उससे प्रभावित अन्नदाता का करुण वर्णन अत्यधिक प्रभावशाली चित्रण।

  3. किसान आन्दोलन में सब किसान ही नही हैं प्रज्ञा जी
    कुछ राजनीति की रोटियां सेंकने वाले भी हैं जिन्होंने किसानों की छवि धूमिल की.
    परंतु 200 किसानों के मरने पर बीजेपी के नेता दुख प्रकट करने की बजाय कहते हैं कि इतने महीनों में इतने किसान तो मर ही जाते हैं… कोई हार्टअटैक से मरता है कोई बुखार से…यानी किसानों का मरना स्वाभाविक है शर्म आनी चाहिए ऐसी सोंच पर…
    आपकी हर एक पंक्ति खूबसूरत है परंतु मुझे इसी बात पर रोना आया….

    “दो सौ से ज्यादा किसान भाईयों की मृत्यु हुई
    हम भारत मां के लाल बचाने आए हैं”
    मार्मिक भाव और सुंदर शिल्पकारिता….👌👌👌👌👌

  4. सच में सरकार कान में तेल डालकर बैठी है
    किसान की समस्या सुनने को तैयार नहीं है आखिर भारत देश में किसानों के साथ ऐसा क्यों हो रहा है??? क्या जरूरत थी जो किसान बिल बना ? और यदि बना भी तो जब किसान ही संतुष्ट नहीं तो किस काम का ???

  5. You are a professional poet as well as a painter, that is why you understand the picture closely, then only your poet sees what is the spirit of the picture, I am convinced of your writing, I am bowing before you…

  6. मैं पहली बार सावन पर आया और देखा कि यहां हर कवि दूसरे कवि की सराहना करता है निन्दा नही करता..

    आपकी कविता १००% सत्य है और हृदय को छूने वाली है
    फोटो पर कविता लिखना बहुत पसंद आया मुझे..
    आपकी कविता और उसकी व्याख्या तथा समीक्षा भी बहुत सुंदर है…..

  7. जो बादल सदैव ही निर्मल
    वर्षा करते थे
    निज तपकर अग्नि में
    तुमको ठण्डक देते थे
    वह आज गरजकर
    तुम्हें जगाने आये हैं
    ओ राजनीति के काले चेहरों !
    ध्यान धरो,
    हम ‘हल की ताकत’
    तुम्हें दिखाने आये हैं…
    Waah very nice poetry 👌👌👌👌
    Your poetry out of the world

  8. आपकी कविता फोटो पर बहुत सटीक बैठती हैl किसानों का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है

  9. फोटो पर सटीक बैठती हुई बहुत ही मार्मिक कविता का प्रस्तुतीकरण l

  10. आपने किसान आंदोलन के दर्शन करा दिए अपनी कविता के माध्यम से।
    किसान आंदोलन का यथार्थ चित्रण किया है आपने,
    एक गरीब किसान की मनोदशा का इससे सुंदर वर्णन हो ही नहीं सकता।

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